जंतर मंतर, जयपुर

जुलाई 31, 2021

जंतर मंतर भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर जिले में महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई गई एक खगोलीय वेधशाला है। जंतर मंतर का निर्माण 1724 से 1734 के बीच सवाई जयसिंह ने कराया था। यहां लगभग 20 यंत्र है। जो गणितीय और खगोलीय उद्देश्य से लगाए गए है। जयपुर का जंतर मंतर 5 वेधशालाओ में सबसे बड़ा माना जाता है। यह वेधशाला करीब 18700 वर्गकिलोमीटर में फैली हुई है। जंतर मंतर में जनता का अर्थ "साधन" और मंतर का अर्थ "फार्मूला" होता है। इसलिए जंतर मंतर को गिनने का साधन कहते है।

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नोट:- अगर आप विद्यार्थी है या इस लेख में कोई एक सवाल का जवाब ढूंढने आए है, तो लेख को पढ़े वरना आप पूर्ण लेख का ऑडियो भी सुन सकते है। और अगर आपको पसंद आए तो सोशल मीडिया पर शेयर करना ना भूले

जंतर मंतर, जयपुर

नामजंतर मंतर

स्थानजयपुर
राष्ट्रभारत
निर्मातासवाई जयसिंह द्वितीय
निर्माण वर्ष1724-1734
गूगल मैपGangori Bazaar, J.D.A. मार्केट, पिंक सिटी, जयपुर, राजस्थान 302002
यंत्रदक्षिणोदक भित्ति यंत्र,उन्नतांश यंत्र,नाड़ीवलय यंत्र,जयप्रकाश यंत्र ’क’ और जयप्रकाश यंत्र ’ख’,ध्रुव दर्शक पट्टिका,सम्राट यंत्र,उन्नतांश यंत्र,दिशा यंत्र,रामयंत्र,चक्र यंत्र,दिगंश यंत्र
विश्व धरोहर में शामिल1 अगस्त 2020
टिकटभारतीयों के लिए 50 रूपये विद्यार्थी के लिए 15 रूपये

जंतर मंतर जयपुर के बारे में रोचक तथ्य

  • जंतर मंतर को बनवाने वाले महाराज सवाई जयसिंह एक खगोलीय वैज्ञानिक थे, इसलिए उन्होंने देश के कई हिस्सों में खगोलीय वेधशालाए बनवाई।
  • सयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन जो यूनेस्को का पूरा नाम है, यूनेस्को ने 1 अगस्त 2020 को जंतर मंतर को विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया।
  • जयपुर के जंतर मंतर में मौजूद सम्राट यंत्र विश्व की सबसे बड़ी सूर्य पत्थर घड़ी है, यह बिलकुल सटीक समय बता सकती है।
  • जंतर मंतर को राजस्थान स्मारक पुरातत्व स्थल और पुरावशेष अधिनियम की धारा 3 व 4 के अंतर्गत संरक्षित किया गया है। इसे 1968 में राष्ट्रीय महत्व का स्मारक मान लिया गया था।
  • जयपुर के जंतर मंतर में कई यंत्र ऐसे हैं जो आज के आधुनिक युग के यंत्रों को भी मात दे देते हैं। उस समय ऐसे यंत्र बनाना भारतीय संस्कृति को वैज्ञानिक भाव से जोड़ना था।
  • 300 साल गुजर जाने के बाद भी जंतर मंतर जयपुर के सारे यंत्र आज भी सुरक्षित हैं।
  • जयपुर का जंतर मंतर सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई गई पांच वेधशाला में सबसे बड़ा है।
  • जूनागढ़ दुर्ग बीकानेर के सभी महल और सामान्य जानकारी

पर्यटकों के लिए जंतर मंतर जयपुर

जंतर मंतर जाने के लिए आप Gangori Bazaar, J.D.A. मार्केट, पिंक सिटी, जयपुर, राजस्थान 302002 पते पर जा सकते है। या गूगल मैप पर "WRFF+WR जयपुर, राजस्थान" डाले।

भारतीय पर्यटकों का 50 रुपए का टिकट लगता है, लेकिन यदि आप विद्यार्थी है तो आपका टिकट 15 रूपये का लगेगा।उसके लिए आपको मान्य छात्र पहचान ले जानी होगी। विदेशी लोगों के लिए टिकट ₹200 का मिलता है और विदेशी छात्रों के लिए ₹100 का टिकट मिलता है।

पर्यटक जो जंतर मंतर घूमने आते है ,वो अपना फोन और कैमरा अंदर ले जा सकते है और फोटोग्राफी कर सकते है।

जंतर मंतर में आपको हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले गाइड आसानी से मिल जाएंगे लेकिन अब धीरे-धीरे क्षेत्रीय और भाषाओं के गाइड भी जंतर-मंतर में आने लगे हैं।

जंतर मंतर में जाने के लिए सबसे सही समय आप साल भर कभी भी जा सकते हैं। यहां आपको क्षेत्रीय भोजन से लेकर विदेशी भोजन भी आसानी से मिल जाएंगे।

जंतर मंतर जयपुर के पास सांगानेर हवाई अड्डा है जिससे आप टैक्सी पकड़कर आसानी से जंतर-मंतर देखने आ सकते हैं।

जंतर मंतर जयपुर के यंत्र

जयपुर के जंतर मंतर में एक से बढ़कर एक खगोलीय यंत्र लगे हुए हैं और जिनकी संख्या 20 के लगभग है। जिन्हें देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। इनमें से कई यंत्र तो सवाई जयसिंह द्वितीय ने खुद निर्मित किए है।

वृहत सम्राट यंत्र

जंतर मंतर का सबसे बड़ा यंत्र वृहत सम्राट यंत्र है, यह विश्व की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी है। इसका कार्य सूर्य की परछाई से स्थानीय समय का अनुमान लगाना है। सम्राट यंत्र गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। सम्राट यंत्र की ऊंचाई धरातल से लगभग 90 फीट तक है। वृहत सम्राट यंत्र पर आप 2 सेकंड की सूक्ष्मता के साथ समय का सटीक अनुमान लगा सकते हैं। इस यंत्र पर सूर्य की परछाई चतुरार्थ चापो के खंडों पर सरकते हुए आसानी से देखी जा सकती है।

लघु सम्राट यंत्र

लघु सम्राट यंत्र वृहत सम्राट यंत्र का एक छोटा रूप है, इसमें आप 20 सेकंड की सूक्ष्मता के साथ समय देख सकते है। यह भी एक सूर्य घड़ी है लेकिन ये सम्राट यंत्र से छोटी है।यह यंत्र लाल पत्थर से बना हुआ है।

उन्नतांश यंत्र

जंतर मंतर जयपुर में प्रवेश करने पर बाई और एक गोल चबूतरे पर दो स्तंभों पर लटके एक धातु का विशाल गोला नजर आएगा उसे उन्नतांश यंत्र कहते है।इस यंत्र का उपयोग आकाश के पिंडो के उन्नतांश और ऊंचाई नापने में किया जाता है। उन्नतांश का अर्थ ऊपरी दिशा में मापी गई ऊंचाई की दूरी होती है।

दिशा यंत्र

जैसा कि नाम से ही विदित होता है, इस यंत्र का उपयोग दिशाओं के ज्ञान के लिए किया जाता है। यह यंत्र जंतर मंतर परिसर के बीच में स्थित है। यह यंत्र बड़े से वर्गाकार समतल धरातल पर लाल पत्थर से विशाल वृत बना है, और वृत के केंद्र के चारो दिशाओं में एक समकोण क्रॉस बना हुआ है।अगर आप देखेंगे तो ये यंत्र आपको सबसे सरल लगेगा।

चक्र यंत्र

दो खंभों पर लगी लोहे की गोलाकार आकृति जिसके बीच में सुई है, उसे चक्र यंत्र कहते है। यह यंत्र निर्देशकों का पता लगाने का कार्य करता है। इससे अक्षांश और देशांतर का सटीक पता लगाया जा सकता है। यह यंत्र जंतर मंतर में एक जैसे दो है।

दिगामा यंत्र

दिगाम यंत्र सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुमान लगाने के काम आता है, यह दो गोलाकार दीवारों से मिलकर बना है जिसमे चार दरवाजे है। और वृत के बीच में एक स्तंभ बना हुआ है।

कर्णवृत्ति यंत्र

कर्णवृत्ती यंत्र का उपयोग सूर्य के सौर चिन्हों को नापने के लिए किया जाता है। इस यंत्र के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। इसलिए आप कमेंट में बता सकते है।

जयप्रकाश यंत्र क और ख

जयप्रकाश यंत्र वही यंत्र हैं जिनका निर्माण सवाई जयसिंह ने स्वयं किया। इन यंत्रों की बनावट कटोरे के आकार की लगती है।यह दोनो यंत्र एक दूसरे से अलग न होकर एक दूसरे के पूरक है। इनमे किनारे वाले भाग को क्षितिज मानकर सूर्य की राशि की अवस्थिति का पता लगाया जाता है। जयप्रकाश यंत्र संगमरमर से बना हुआ है,और इसमें संगमरमर की प्रत्येक पट्टी एक घंटे को दिखाती है।

नाडीवलय यंत्र

नाडी वलय यंत्र में दो गोल सतह है, जिनमे से एक का मुख उत्तर दिशा की और है, और दूसरी का मुख दक्षिण दिशा की और है।यह सतह तीन अंक पट्टिकाओ में विभाजित है, इसके बीच में एक छोटी सी कील है जिसे पृथ्वी को धुरी मानकर समय की गणना की जाती है। इस यंत्र की दो पट्टिका पश्चिम पद्धति से घंटे और मिनट बताती है और एक पट्टिका हिंदुओ के समयनुसार घटी और पल दिखाती है।

नाडी बाल यंत्र के दक्षिणी सतह पर लिखे संस्कृत लेख इस यंत्र को और खास बनाते है। सम्राट यंत्र 12 घंटे का समय बताता है, लेकिन नाड़ीवलय यंत्र 24 घंटे का समय बताता है। यह यंत्र सूर्य की रोशनी के साथ साथ चंद्रमा की रोशनी में भी काम करता है। इस यंत्र की दोनो पट्टिका 6-6 महीने का समय बताने का कार्य करती है।

दिगंश यंत्र

जयपुर के जंतर मंतर में निकास द्वार के पास दिगंश यंत्र प्राचीर पर बना हुआ है। इसके द्वारा पिंडो के दिगंश ज्ञात किया जाता है। दिगंश का साधारण अर्थ आप क्षितिज समझ सकते है। दिशंग यंत्र एक बेलनाकार यंत्र है।

ध्रुवदर्शक पट्टिका या यंत्र

यह उत्तर से दक्षिण दिशा की और एक दिवारनुमा पट्टी है, जिसके यह दक्षिण से उत्तर की ओर उठी हुए है इसके दक्षिणी छोर पर आंख लगाकर ध्रुव तारे की स्थिति ज्ञात की जाती है।

इस यंत्र का उपयोग ध्रुव तारे को देखने के लिए होता है, इसलिए इसका नाम ध्रुव दर्शक यंत्र रखा गया था।

राशि वलय यंत्र

ये 12 यंत्र एक समान लगते हैं लेकिन जब राशियों को देखते हैं तो इनकी आकृति एक समान है और यह 12 राशियों को देखने के लिए बनाए गए हैं। ये प्रत्येक राशि में ग्रह नक्षत्रों को ज्ञात करने में सहायक है। इन १२ में से प्रत्येक यंत्र का प्रयोग तब किया जाता है जब इनसे संबंधित राशि मध्यान रेखा पर कर चुकी हो। राशि वलय यंत्र सिर्फ जयपुर की वैधशाला में ही है।

राम यंत्र

राम यंत्र आप जंतर मंतर की पश्चिमी दीवार के पास देख सकते है, इसके लघु राम यंत्र भी इन्ही यंत्रों के पास बने हुए है। राम यंत्र का रंग लाल है, और इसमें स्तंभों के बीच फलक दर्शाए गए है फॉलो के बीच एक स्तंभ है,जिसका उपयोग कर स्थानीय अक्षांश और देशांतर के साथ साथ खगोलीय पिंडो का उन्नतांश और दिगंश भी ज्ञात किया जाता था।

क्रांति वृत यंत्र

क्रांति व्रत यंत्र दिन के समय सूर्य के चिन्हों को देखने के लिए बनाया गया है, इस यंत्र में भी गोल दीवार है जो तीन मंजिल तक बनी है जिसमे तीनों मंजिलों पर बहुत सारे दरवाजे जैसे आकृति बनी हुई है,और बीच में एक स्तंभ है।

कपाली यंत्र

कपाली यंत्र जयप्रकाश यंत्र से काफी मिलता जुलता है, इसके किनारे को क्षितिज मानकर सूर्य के प्रकाश का परिदर्शन किया जाता है।

दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र

यह अर्धचंद्राकार दिवारनुमा यंत्र है, जिसमे दो तरफ सीढ़िया बनी हुई है। दीवार का पिछला भाग सपाट है दीवार के सामने 180% को दर्शाया गया है। इसका मरम्मत कार्य 1876 में कराया गया और दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र का कार्य दोपहर में सूर्य का उन्नतांश ज्ञात करने के लिए किया जाता था।

जंतर मंतर जयपुर का इतिहास

जंतर मंतर का निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1724 से 1734 तक करवाया था, क्योंकि महाराज सवाई जयसिंह एक खगोलशास्त्री थे और खगोल विज्ञान में उनकी काफी रुचि थी। उन्होंने जयपुर के अलावा और भी कई जगह वैधशालए बनवाई। जंतर मंतर दिल्ली, जंतर मंतर उज्जैन, बनारस जंतर मंतर , मथुरा जंतर मंतर बनवाए इन सभी में से जयपुर और दिल्ली के जंतर मंतर सही हालत में है बाकी सब देखरेख के अभाव और मौसम की मार के कारण खंडहर बन चुके है।

सवाई जयसिंह द्वितीय जयपुर के महाराजा एक खगोल शास्त्री थे इसीलिए उन्हें अंतरिक्ष के बारे में गणितीय विधि जानना बहुत पसंद था। जंतर मंतर में रखें अधिकतर यंत्रों का आविष्कार सवाई जयसिंह ने किया था। सवाई जयसिंह ने हिंदू खगोल शास्त्र पर आधारित पांच वेधशाला ओं का निर्माण करवाया।

जंतर मंतर जयपुर के निर्माण करवाने से पहले महाराजा सवाई जयसिंह ने विदेशों से खगोल शास्त्र की पांडुलिपिया मंगवाई और उनका अनुवाद करवाया। फिर उनके खगोल शास्त्र को समझकर जंतर मंतर का निर्माण कराया। 

क्या जंतर मंतर जयपुर के यंत्र आज भी सही से काम करते है?

जंतर मंतर में रखे सारे यंत्र आज भी पहले की भांति ही बिल्कुल सटीक और सही जानकारी उपलब्ध कराते हैं। प्राचीन युग में ऐसी जानकारी उपलब्ध कराना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जयपुर के जंतर मंतर में रखें सारे यंत्र आज भी सुरक्षित है और इसीलिए इन्हें विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है।

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संदर्भ

  • जंतर मंतर जयपुर फोटो pixabey से ली गई है। इसके लाइसेंस और फोटोग्राफर की जाकारी आप लिंक से जाकर ले सकते है।
  • वीडियो की ऑडियो गूगल टेक्स्ट टू स्पीच का इस्तेमाल करके बनाई गई है। और फोटो जंतर मंतर जयपुर विकिपीडिया कॉमन्स से ली है। आप लाइसेंस की जानकारी लिंक पर क्लिक कर ले सकते है।
  • विकिपीडिया से जानकारी नही ली गईं है, लेकिन लेख लिखने की प्रेरणा ली गई है।

बाहरी लिंक

  • राजस्थान की पर्यटन वेबसाइट 
  • inditales वेबसाइट पर यंत्रों के बारे में अच्छी जानकारी है।
  • traveltriangle पर भी जंतर मंतर के बारे में आप पढ़ सकते है।

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