देवी धौलागढ़ मंदिर, अलवर
धोलागढ़ देवी का मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में कठूमर तहसील के गांव, बहतू कलां में स्थित है। इसका मेला बैसाख मास में पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक लगता है, जिसे देखने के लिए देश के अलग अलग राज्यों से लोग आते है। धौलागढ़ का मंदिर अरावली पर्वत माला में चोटी पर है जिस तक पहुंचने के लिए आपको 101 के आसपास सीढियां चढ़नी पड़ती है।
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मंदिर देवी धौलागढ़
उपनाम | धौलेश्वरी माता |
स्थान | बहतुकला,कठूमर,अलवर |
राज्य | राजस्थान |
निर्माण | आल्हा ऊदल (किवदंती) |
मेला तारीख | बैसाख की पूर्णिमा |
धार्मिकता | हिंदू |
सीढियां | 101 |
कुलदेवी | वंछास गौत्र व मण्डोवरा खांप |
विधानसभा | कठूमर |
धौलागढ़ का मेला कब लगता है?
हिंदी महीनो के अनुसार धौलागढ़ देवी का मेला बैसाख मास की पूर्णिमा से शुरू होकर वैशाख मास की ही अमावस्या तक लगता है। यह मेला अप्रैल के महीने में लगता है।
धौलागढ़ देवी मेले में कितनी भीड़ होती है?
धोलागढ़ देवी के मंदिर में 1 दिन में एक लाख तक भीड़ हो सकती है। सर्वाधिक भीड़ छठ से लेकर नवमी तक होती है। अगर आपको धौलागढ़ मंदिर जाना है तो आप दसमी से लेकर बारस तक जा सकते हैं। इस समय आपको इतनी भीड़ भी नही मिलेगी और आप माता के दर्शन आसानी से कर सकेंगे और मेले का आनंद भी बड़े आराम से उठा सकेंगे।
धौलागढ़ मंदिर निर्माण संबंधी किवदंती
कहा जाता है कि धोलागढ़ माता का मंदिर इतिहास में प्रसिद्ध आल्हा उदल द्वारा कराया गया था। लेकिन इसका जीर्णोद्धार भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने कराया। मंदिर निर्माण को लेकर और भी किवदंतियां है। लेकिन किसी की भी सही से पुष्टि नहीं हो सकी है।
धौलागढ़ मंदिर के बारे में
धौलागढ़ माता का मंदिर पहाड़ की ऊंची चोटी पर बना हुआ है, जिस पर चढ़ने के लिए 101 से ज्यादा सीढ़िया है। मंदिर में सीढ़ियों पर चढ़ते समय भी एक दो दुकानें आती है। और चुगा भी सीढ़ियों के पास ही डाला जाता है। ऊपर जाने पर माता जी के शहर बने हुए है और टीन शेड से मदर को ढका हुआ है। मंदिर में ऊपर धर्मशाला और लोगो को मुफ्त खाना मिलता है। मंदिर के नीचे परसाद की दुकान है, जिनमें आपको आसानी से प्रसाद, ध्वज और नारियल मिल जाते है। मेले के दिनों में मंदिर के नीचे सर्कस, खिलौनों की दुकान, जूस की दुकान सिंगार, की दुकान मटकी यों और मेले में लगने वाली सारी दुकानें मौजूद होती हैं।
धौलागढ़ जाने के रास्ते
धोलागढ़ आने के लिए सिर्फ स्थल मार्ग ही है यहां रेल भी चलती है लेकिन आप अलवर तक रेल मार्ग से आकर वहां से लक्ष्मणगढ़ तक बसों से आ जाए और लक्ष्मणगढ़ से बहतूकलां 10 किलोमीटर की दूरी पर है।
धौलागढ़ मंदिर का इतिहास
मंदिर के इतिहास के बारे में कई किंवदंतियों प्रचलित हैं,जिनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय धैला नाम की कन्या की है। यह कन्या बल्लपुरा रामगढ़ ग्राम में डोडरवती ब्राह्मण में जन्मी थी। जिसके माता पिता का देहांत बचपन में ही हो गया जिसके बाद वह कन्या रोज गाय चराने जाया करती और वह देर रात से अपने घर वापस लौटती थी।
एक दिन उसके भैया भाबी को शक हुआ और उन्होंने धैला का पीछा किया जिसके बाद उन्होंने पाया की राजसभा के मुख्य देवी के सिंहासन पर धैला बैठी थी। और माना जाता है,की भाई और भाबि को देख धैला ने अपने प्राण वही त्याग दिए।
फिर बात आती है लाखा बंजारे पर एक बार लाखा बंजारा वहा ठहरा और उसकी गाड़ियों में हीरे जवाहरात थे लेकिन देवी के पूछने पर उसने अपनी गाड़ियों में नमक बताया। और जब सुबह लाखा ने देखा तो उसकी गाड़ियों में वाकई नमक था। जिसे देखकर वह रोने लगा। और देवी प्रकट हुई और उसने माफी मांगी और उसके बाद देवी ने उसके नमक का वापस हीरे जवाहरात बना दिए।
उसके बाद लाखा बंजारे ने वापस लौटते वक्त वहां एक मंदिर और कुंड बनवाया। और धीरे धीरे वहां लोग लटूरी, जात देने आने लगे और वहां मेला भी भरने लगा।
धौलागढ़ माता का दर्शन समय
वैसे तो आप धोलागढ़ देवी की मंदिर कभी भी जा सकते हैं लेकिन मार्च में धोलागढ़ का मेला भरता है जिस में जाने पर आपको वहां अलग भ आनंद का अनुभव होगा। धोलागढ़ देवी के दर्शन का समय सुबह 8:00 बजे से शाम को 6:00 बजे तक होता है। लेकिन मेले के समय आप पूरे दिन रात कभी भी माता के दर्शन कर सकते हैं।
देवी धौलागढ़ किसकी कुलदेवी है?
धौलागढ़ माता वंछास गौत्र व मण्डोवरा खांप वंश की कुलदेवी मानी जाती है, लेकिन इसकी पुष्टि अभी तक नही हुई है। आप कमेंट में देवी धौलागढ़ के बारे में और जानकारी बता सकते है।
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संदर्भ
- यूट्यूब से वीडियो एंबेड की है, न की डाउनलोड।
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